यहाँ दर्शन का क्रम प्राय: गर्मी में अक्षय तृतीया से हरियाली तीज तक प्रात: 6 बजे से 12 बजे तक दोपहर 4 बजे से 5 बजे तक एवं सायं 7 बजे से 10 तक होते हैं। हरियाली तीज से प्रात: 6 से 11 एवं दोपहर 3-4 बजे तक एवं रात्रि 6-1/2 से 9 तक होते हैं। मन्दिर में समय-समय पर दर्शन, एवं उत्सवों के अनुरूप यहाँ की समाज गायकी अत्यन्त प्रसिद्ध है। यहाँ की साँझी कला जिसका केन्द्र मन्दिर ही है अत्यन्त प्रसिद्ध है। बलदेव पटेबाजी के अखाड़ेबन्दी (जिसमें हथियार चलाना लाठी भाँजना आदि) का बड़ा शौक़ है समस्त मथुरा जनपद एवं पास-पड़ौसी ज़िलों में भी यहाँ का `काली` का प्रदर्शन अत्यन्त उत्कृष्ट कोटि का है। बलदेव के मिट्टी के बर्तन बहुत प्रसिद्ध हैं। यहाँ का मुख्य प्रसाद माखन मिश्री तथा श्री ठाकुरजी को भाँग का भोग लगने से यहाँ प्रसाद रूप में भाँग पीने के शौक़ीन लोगों की भी कमी नहीं। भाँग तैयार करने के भी कितने ही सिद्ध हस्त-उस्ताद हैं यहाँ की समस्त परम्पराओं का संचालन आज भी मन्दिर से होता है। यदि सामंती युग का दर्शन करना हो तो आज भी बलदेव में प्रत्यक्ष हो सकता है। आज भी मन्दिर के घंटे एवं नक्कारखाने में बजने वाली बम्ब की आवाज से नगर के समस्त व्यापार व्यवहार चलते हैं।
महामना मालवीय जी, पं0 मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, मोहनदास करमचन्दगाँधी (बापू) माता कस्तूरबा, राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, राजवंशी देवी जी, डॉ॰ राधाकृष्णजी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, मोरार जी देसाई, दीनदयालजी उपाध्याय, जैसे श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, भारतेन्दु बाबू हरिशचन्द्रजी, हरिओमजी, निरालाजी, भारत के मुख्य न्यायाधीश जास्टिस बांग्चू के0 एन0 जी जैसे महापुरुष बलदेव दर्शनार्थ पधारते रहे हैं। जिनके दर्शनार्थ पधारने के दस्तावेज आज भी सुरक्षित हैं। facebook
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