Monday, 13 January 2014

ब्रिटिश शासन

Contect usइसके बाद फिरंगी का जमाना आया। मन्दिर सदैव से देश-भक्तों के जमावड़े का केन्द्र रहा। उनकी सहायता एवं शरण-स्थल का एक मान्य-स्रोत भी। जब ब्रिटिश शासन को पता चला तो उन्होंने मन्दिर के मालिकान पाण्डों को आगाह किया कि वे किसी भी स्वतन्त्रता प्रेमी को अपने यहाँ शरण न दें परन्तु आत्मीय सम्बन्ध एवं देश के स्वतन्त्रता प्रेमी मन्दिर के मालिकों ने यह हिदायत नहीं मानी, जिससे चिढ़-कर अंग्रेज़ शासकों ने मन्दिर के लिये जो जागीरें भूमि एवं व्यवस्थाएं पूर्व शाही परिवारों से प्रदत्त थी उन्हें दिनाँक 31 दिसम्बर सन् 1841 को स्पेशल कमिश्नर के आदेश से कुर्की कर जब्त कर लिया गया और मन्दिर के ऊपर पहरा बिठा दिया जिससे कोई भी स्वतन्त्रता प्रेमी मन्दिर में न आ सके। परन्तु किले जैसे प्राचीरों से आवेष्ठित मन्दिर में किसी दर्शनार्थी को कैसे रोक लेते? अत: स्वतन्त्रता संग्रामी दर्शनार्थी के रूप में आते तथा मन्दिर में निर्बाध चलने वाले सदावर्त एवं भोजन व्यवस्था का आनन्द लेते ओर अपनी कार्य-विधि का संचालन करके पुन: अभीष्ट स्थान को चले जाते। अत: प्रयत्न करने के बाद भी गदर प्रेमियों को शासन न रोक पाया।

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